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खट्टे-मीठे बेर में समाएं कई गुण



आयुर्वेद के अनुसार बेर दिल की सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी है। बेर खाने से कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल रहता है, जिससे दिल से जुछी बीमारियां होने की आशंका कम हो जाती है। बरे खाने से बार-बार प्यार लगने की शिकायत भी दूर होती है। खट्टे-मीठे बेर में पोटैशियम, कॉपर, आयरन, फॉस्फोरस और खनिज पदार्थ आदि भी होते हैं। इन सभी तत्वों से इम्यून सिस्टम मजबूत बनता है और शरीर में रोगों से लडने की क्षमता बढती है। गर्मियों में पौधे सुषुप्तावस्था में प्रवेश कर जाते हैं व उस समय पत्तियां अपने आप ही झड जाती हैं तब पानी की आवश्यकता नहीं के बारबर होती है। इस तरह बेर अधिक तापमान तो सहन कर लेता है लेकिन शीत ऋतु में पडने वाले पाले के प्रति अतित संवेदनशील होता है। क्योंकि इसमें कम पानी व सूखे से लडने की विशेष क्षमता होती है।



जिस तरह नींबू और संतरे में विटामिन सी प्रचुर मात्रा पाई जाती हैं उसी तरह बेर में भी। बेर में अन्य फलों के मुकाबले विटामिन-सी और एंटीऑक्सीडेंट ज्यादा मात्रा में होते हैं। इसके सेवन से त्वचा बढती उम्र तक जवां बनी रहती हैं। इसमें विटामिन सी की मात्रा खट्टे फलों से 20 गुना तक अधिक होती है।


बेर की गुठली को घिसकर आंखों में काजल की तरह लगाने से कनीनिका प्रदाह ठीक हो जाता है। आंखों से बहने वाला पानी भी बंद हो जाता है।



बेर के पत्तों को पानी में काफी समय तक उबालकर काढा बनाकर छानकर पीने से शरीर की बढती चर्बी कंट्रोल हो जाती है।



चेचक में बेर के पत्तों का रस भैंस के दूध के साथ रोगी को देने से रोग का वेग कम होता है। बेर में 6ग्राम पत्तों के चूर्ण को 2ग्राम गुड के साथ मिलाकर रोगी को खिलाने से भी 2-3 दिन में चेचक खत्म होने लगता है।

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